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जसारत के रहते भी ख़ामोश होना | शाही शायरी
jasarat ke rahte bhi KHamosh hona

ग़ज़ल

जसारत के रहते भी ख़ामोश होना

पवन कुमार

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जसारत के रहते भी ख़ामोश होना
है इस के सिवा क्या सितम-पोश होना

परेशाँ नहीं तोहमतों से मैं लेकिन
गिराँ है तुम्हारा ये ख़ामोश होना

मोहब्बत में इल्ज़ाम लगने दो यारो
वफ़ा में है जाएज़ ख़ता-पोश होना

वही इक क़द-आवर जो तश्हीर में था
पुर-असरार है उस का रू-पोश होना

मिरी चाहतों को हवा दे गया है
उन आँखों का वादा-फ़रामोश होना

पलक तक कभी एक क़तरा न पहुँचा
है आँखों की क़िस्मत बला-नोश होना

सितम है बला है क़यामत है गोया
बिछड़ने से पहले हम-आग़ोश होना