EN اردو
जल्वे दिखाए यार ने अपनी हरीम-ए-नाज़ में | शाही शायरी
jalwe dikhae yar ne apni harim-e-naz mein

ग़ज़ल

जल्वे दिखाए यार ने अपनी हरीम-ए-नाज़ में

अनवर सहारनपुरी

;

जल्वे दिखाए यार ने अपनी हरीम-ए-नाज़ में
सज्दे चमक चमक उठे मेरे सर-ए-नियाज़ में

जल्वा-ए-दीद में तिरी शोला-ए-तूर था निहाँ
आग सी और लग गई मेरे दिल-ए-गुदाज़ में

शौक़ ने खीच ली मिरे यार की जब नक़ाब-ए-रुख़
हुस्न की रौशनी हुई जल्वा-गह-ए-मजाज़ में

इश्क़ की बे-हिजाबियाँ हुस्न की पर्दा-दारियाँ
होने लगी तलाशियाँ नाज़ में और नियाज़ में

दिल में लिया अदाओं ने सब्र-ओ-क़रार भी लिया
लुट गया घर भरा हुआ जुम्बिश-ए-चश्म-ए-नाज़ में

मेरी नज़र के मिलते ही उन की निगाह झुक गई
दिल को जवाब मिल गया चश्म-ए-फुसूँ-तराज़ में

सेहर वो ही कशिश वो ही मस्ती-ओ-बे-ख़ुदी वो ही
तेरी नज़र समा गई नर्गिस-ए-नीम-बाज़ में

पाँव फ़िगार में तो हों दिल तो नहीं फ़िगार-ए-ग़म
कोई सनम नहीं न हो दश्त-ए-जुनूँ-नवाज़ में

जल्वा-ए-यार देख कर तूर पे ग़श हुए कलीम
अक़्ल-ओ-ख़िरद का काम क्या महफ़िल-ए-हुस्न-ओ-नाज़ में

कर ले ख़ुदा की बंदगी 'अनवर'-ए-ख़स्ता-दिल ज़रा
भूल न अपने रब को तू नफ़्स की हिर्स-ओ-आज़ में