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जहाँ अहद-ए-तमन्ना ख़त्म हो जाए | शाही शायरी
jahan ahd-e-tamanna KHatm ho jae

ग़ज़ल

जहाँ अहद-ए-तमन्ना ख़त्म हो जाए

अंदलीब शादानी

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जहाँ अहद-ए-तमन्ना ख़त्म हो जाए
अज़ाब-ए-जावेदानी ज़िंदगी है

रुलाती है मुझे क्यूँ चाँदनी-रात
यही इक राज़ मेरी ज़िंदगी है

ख़लिश हो दर्द हो काहिश हो कुछ हो
फ़क़त जीना भी कोई ज़िंदगी है

हलाक-अंजाम तकमील-ए-तमन्ना
बका-ए-आरज़ू ही ज़िंदगी है

जिगर में टीस लब हँसने पे मजबूर
कुछ ऐसी ही हमारी ज़िंदगी है

वो चाहे जिस क़दर भी मुख़्तसर हो
मोहब्बत की जवानी ज़िंदगी है

उमीद मर चुकीं मैं जी रहा हूँ
अजब बे-अख़्तियारी ज़िंदगी है

जवानी और हंगामों से ख़ाली
ये जीना है ये कोई ज़िंदगी है

गुज़ारी थीं ख़ुशी की चंद घड़ियाँ
उन्हीं की याद मेरी ज़िंदगी है

मोहब्बत दोनों जानिब से मोहब्बत
न पूछो आह कैसी ज़िंदगी है