EN اردو
जब याद आया तेरा महकता बदन मुझे | शाही शायरी
jab yaad aaya tera mahakta badan mujhe

ग़ज़ल

जब याद आया तेरा महकता बदन मुझे

रिफ़अत अल हुसैनी

;

जब याद आया तेरा महकता बदन मुझे
बहला सकी न बू-ए-गुल-ओ-यासमन मुझे

सड़कों पे जो फिराते थे बे-पैरहन मुझे
अब देने आए हैं वो मिरे घर कफ़न मुझे

अहल-ए-ख़िरद के साए से ये धूप ही भली
देता है मशवरा मिरा दीवाना-पन मुझे

इक आरज़ू है दौलत-ए-कौनैन से सिवा
कह कर पुकारें लोग शहीद-ए-वतन मुझे

फ़िक्र-ए-हयात-ओ-फ़िक्र-ए-ज़माना के साथ साथ
फ़िक्र-ए-हबीब है कभी फ़िक्र-ए-सुख़न मुझे