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जब वो बुत हम-कलाम होता है | शाही शायरी
jab wo but ham-kalam hota hai

ग़ज़ल

जब वो बुत हम-कलाम होता है

दाग़ देहलवी

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जब वो बुत हम-कलाम होता है
दिल ओ दीं का पयाम होता है

उन से होता है सामना जिस दिन
दूर ही से सलाम होता है

दिल को रोकूँ कि चश्म-ए-गिर्यां को
एक ही ख़ूब काम होता है

आप हैं और मजमा-ए-अग़्यार
रोज़ दरबार-ए-आम होता है

ज़ीस्त से तंग हैं न छेड़ हमें
देख ग़ुस्सा हराम होता है

लीजे मूसा से लन-तरानी की
अब तो हम से कलाम होता है

'दाग़' का नाम सुन के वो बोले
आदमी का ये नाम होता है