जब तिरे नैन मुस्कुराते हैं
ज़ीस्त के रंज भूल जाते हैं
क्यूँ शिकन डालते हो माथे पर
भूल कर आ गए हैं जाते हैं
कश्तियाँ यूँ भी डूब जाती हैं
नाख़ुदा किस लिए डराते हैं
इक हसीं आँख के इशारे पर
क़ाफ़िले राह भूल जाते हैं
ग़ज़ल
जब तिरे नैन मुस्कुराते हैं
अब्दुल हमीद अदम