EN اردو
जब से वो कह के गए हैं कि अभी आते हैं | शाही शायरी
jab se wo kah ke gae hain ki abhi aate hain

ग़ज़ल

जब से वो कह के गए हैं कि अभी आते हैं

नज़ीर बनारसी

;

जब से वो कह के गए हैं कि अभी आते हैं
कोई आता है समझता हूँ वही आते हैं

बर्ग-ओ-बार आते हैं शाख़ों में गुल-ओ-ग़ुंचा भी
वो जब आते हैं चमन में तो सभी आते हैं

अपनी क़िस्मत का सितारा तो नहीं गर्दिश में
न ख़बर आती है उन की न वही आते हैं

इश्क़-ए-सादिक़ ने झुकाया सर-ए-हुस्न-ए-मग़रूर
जिन को दावा था न आने का वही आते हैं

अश्क बन कर कभी आते हैं कभी बन के हँसी
अब मोहब्बत में बहर-शक्ल वही आते हैं

अब तो इक भीड़ चला करती है उन के हम-राह
बात भी कर नहीं सकते जो कभी आते हैं

पीने जाते हैं सर-ए-शाम 'नज़ीर' एक बुज़ुर्ग
और कुछ रात ढले बन के वली आते हैं