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जब रक़ीबों का सितम याद आया | शाही शायरी
jab raqibon ka sitam yaad aaya

ग़ज़ल

जब रक़ीबों का सितम याद आया

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

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जब रक़ीबों का सितम याद आया
कुछ तुम्हारा भी करम याद आया

कब हमें हाजत-ए-परहेज़ पड़ी
ग़म न खाया था कि सम याद आया

न लिखा ख़त कि ख़त-ए-पेशानी
मुझ को हंगाम-ए-रक़म याद आया

शोला-ए-ज़ख़्म से ऐ सैद-फ़गन
दाग़-ए-आहू-ए-हरम याद आया

ठहरे क्या दिल कि तिरी शोख़ी से
इज़्तिराब-ए-प-ए-हम याद आया

ख़ूबी-ए-बख़्त कि पैमान-ए-अदू
उस को हंगाम-ए-क़सम याद आया

खुल गई ग़ैर से उल्फ़त उस की
जाम-ए-मय से मुझे जम याद आया

वो मिरा दिल है कि ख़ुद-बीनों को
देख कर आइना कम याद आया

किस लिए लुत्फ़ की बातें हैं फिर
क्या कोई और सितम याद आया

ऐसे ख़ुद-रफ़्ता हो ऐ 'शेफ़्ता' क्यूँ
कहीं उस शोख़ का रम याद आया