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जब रात के सीने में उतरना है तो यारो | शाही शायरी
jab raat ke sine mein utarna hai to yaro

ग़ज़ल

जब रात के सीने में उतरना है तो यारो

रशीद क़ैसरानी

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जब रात के सीने में उतरना है तो यारो
बेहतर है किसी चाँद को शीशे में उतारो

दीवार पिघलती है झुलस जाते हैं साए
ये धूप निगाहों की बहुत तेज़ है यारो

परछाइयाँ पूजेंगे कहाँ तक ये पुजारी
अपनाओ कोई जिस्म कोई रूप तो धारो

ख़ुद अहल-ए-क़लम इस में कई रंग भरेंगे
तुम ज़ेहन के पर्दे पे कोई नक़्श उभारो

तुम वक़्त की दहलीज़ पे दम तोड़ रहे हो
मैं भागता लम्हा हूँ मुझे तुम न पुकारो

हालात ये कहते हैं कि तुम ज़िंदा रहोगे
पलकों पे लरज़ते हुए ख़ुश-बख़्त सितारो