जब मैं उस के गाँव से बाहर निकला था
हर रस्ते ने मेरा रस्ता रोका था
मुझ को याद है जब उस घर में आग लगी
ऊपर से बादल का टुकड़ा गुज़रा था
शाम हुई और सूरज ने इक हिचकी ली
बस फिर क्या था कोसों तक सन्नाटा था
मैं ने अपने सारे आँसू बख़्श दिए
बच्चे ने तो एक ही पैसा माँगा था
शहर में आ कर पढ़ने वाले भूल गए
किस की माँ ने कितना ज़ेवर बेचा था
ग़ज़ल
जब मैं उस के गाँव से बाहर निकला था
असलम कोलसरी