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जब कोई भी ख़ाक़ान सर-ए-बाम न होगा | शाही शायरी
jab koi bhi KHaqan sar-e-baam na hoga

ग़ज़ल

जब कोई भी ख़ाक़ान सर-ए-बाम न होगा

अमीन राहत चुग़ताई

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जब कोई भी ख़ाक़ान सर-ए-बाम न होगा
फिर अहल-ए-ज़मीं पर कोई इल्ज़ाम न होगा

कल वो हमें पहचान न पाए सर-ए-राहे
शायद उन्हें अब हम से कोई काम न होगा

फिर कौन समझ पाएगा असरार-ए-हक़ीक़त
जब फ़ैसला कोई भी सर-ए-आम न होगा

ये अहद-ए-रवाँ ख़ाक-निशाँ ध्यान में रक्खो
फिर ढूँडोगे किस को जो कोई नाम न होगा

बनने को है इक रोज़ परिंदों का मुक़द्दर
उतरेंगे तो हम-रंग-ए-ज़मीं दाम न होगा

महफ़िल में अगर ज़िक्र हो अरबाब-ए-वफ़ा का
ऐसा नहीं 'राहत' कि तिरा नाम न होगा