जब किसी ने हाल पूछा रो दिया
चश्म-ए-तर तू ने तो मुझ को खो दिया
दाग़ हो या सोज़ हो या दर्द-ओ-ग़म
ले लिया ख़ुश हो के जिस ने जो दिया
अश्क-रेज़ी के धड़ल्ले ने ग़ुबार
जब ज़रा भी दिल पे देखा धो दिया
दिल की पर्वा तक नहीं ऐ बे-ख़ुदी
क्या किया फेंका कहाँ किस को दिया
कुछ न कुछ इस अंजुमन में हस्ब-ए-हाल
तू ने क़स्साम-ए-अज़ल सब को दिया
किश्त-ए-दुनिया क्या ख़बर क्या फल मिले
तुख़्म-ए-ग़म हम ने तो आ कर बो दिया
ये भी नशा मय-कशो कुछ कम नहीं
दे न दे साक़ी प तुम समझो दिया
'शाद' के आगे भला क्या ज़िक्र-ए-यार
नाम इधर आया कि उस ने रो दिया
ज़ुमरा-ए-अहल-ए-क़लम में लिख के नाम
ख़ुद को नाहक़ 'शाद' तू ने खो दिया
ग़ज़ल
जब किसी ने हाल पूछा रो दिया
शाद अज़ीमाबादी