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जब है मिटना ही तो अंदाज़ हकीमाना सही | शाही शायरी
jab hai miTna hi to andaz hakimana sahi

ग़ज़ल

जब है मिटना ही तो अंदाज़ हकीमाना सही

रईस नियाज़ी

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जब है मिटना ही तो अंदाज़ हकीमाना सही
ख़ल्वत-ए-ग़म के एवज़ गोशा-ए-मय-ख़ाना सही

रौनक-ए-बादा-कशी जुरअत-ए-रिंदाना सही
ख़ार होना है तो मय-ख़ाना-ब-मय-ख़ाना सही

इश्क़ इक क़तरे में दरिया को समो देता है
अक़्ल को दीवाना समझती है तो दीवाना सही

मेरे दिल में भी तजल्ली के ख़ज़ीने हैं निहाँ
माह-ओ-ख़ुरशीद में अक्स-ए-रुख़-ए-जानाना सही

फ़ुर्सत-ए-शौक़ ग़नीमत है उठा भी साग़र
ज़िंदगी एक छलकता हुआ पैमाना सही

क्या ख़बर थी कि मय-ए-नाब में इतना है सुरूर
अब जो पी ली है तो इक और भी पैमाना सही

मेरी वारफ़्ता-निगाही की भी कुछ क़ीमत है
बज़्म की बज़्म रुख़-ए-यार का परवाना सही

फिक्र-ओ-एहसास में पोशीदा हैं असरार-ए-हयात
बाल-ओ-पर क़ुव्वत-ए-पर्वाज़ से बेगाना सही

यही क्या कम है कि बरबाद-ए-मोहब्बत है 'रईस'
तेरे अल्ताफ़-ओ-इनायात से बेगाना सही