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जब आसमाँ ने नन्हे परिंदों को पर दिए | शाही शायरी
jab aasman ne nanhe parindon ko par diye

ग़ज़ल

जब आसमाँ ने नन्हे परिंदों को पर दिए

मुसर्रत हाशमी

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जब आसमाँ ने नन्हे परिंदों को पर दिए
ज़ालिम हवा ने तीर भी हम-राह कर दिए

इस गुल्सिताँ से फ़ाख़्ता पर्वाज़ कर गई
मौसम ने शाख़-सार भी काँटों से भर दिए

हर शख़्स अहद-ए-जब्र में हर्फ़-ए-दुआ हुआ
होंटों को हादसात ने क्या क्या हुनर दिए

अपनी निगह के आईने सूरज को सौंप कर
हम ने भी काएनात को आईना-गर दिए

फिर आसमाँ के औज से शबनम अता हुई
फिर मेरी पस्तियों ने मुझे बहर-ओ-बर दिए