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जाने क्यूँ भाई का भाई खुल के दुश्मन हो गया | शाही शायरी
jaane kyun bhai ka bhai khul ke dushman ho gaya

ग़ज़ल

जाने क्यूँ भाई का भाई खुल के दुश्मन हो गया

वसीम मीनाई

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जाने क्यूँ भाई का भाई खुल के दुश्मन हो गया
घर में दीवारें उठाना अब तो फैशन हो गया

एक मुफ़लिस को सड़क पर गालियाँ देने के बा'द
वो समझता है हमारा नाम रौशन हो गया

आज तो आए हमें किस की क़यादत पर यक़ीं
कल जो अपना रहनुमा था आज रहज़न हो गया

देख कर बच्चों को भी अब याद आता ही नहीं
महव कुछ ऐसा हमारे दिल से बचपन हो गया

छाते छाते छा गई फ़स्ल-ए-बहाराँ पर ख़िज़ाँ
देखते ही देखते पामाल गुलशन हो गया

मैं ने तो हक़ बात ही मुँह से निकाली थी 'वसीम'
जाने क्यूँ सारा ज़माना मेरा दुश्मन हो गया