जान-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न अब भी इश्क़ की कहानी है 
लफ़्ज़ हैं नए लेकिन दास्ताँ पुरानी है 
ज़िंदगी के अफ़्साने एक से सही लेकिन 
जो मिरी कहानी है वो मिरी कहानी है 
देखता है रह रह कर मुँह निगाह वालों का 
मिस्रा-ए-ग़रीब अपना नक़्श-ए-बे-ज़बानी है 
इल्तिफ़ात फ़रमाएँ या तग़ाफ़ुल अपनाएँ 
मुद्दआ' हसीनों का सिर्फ़ जाँ-सितानी है 
पुर-ख़ता सही 'जाफ़र' बे-वफ़ा सही 'जाफ़र' 
ख़ैर तुम सही हक़ पर बात क्या बढ़ानी है
        ग़ज़ल
जान-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न अब भी इश्क़ की कहानी है
जाफ़र बलूच

