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जाँ-बाज़ों के लब पर भी अब ऐश का नाम आया | शाही शायरी
jaan-bazon ke lab par bhi ab aish ka nam aaya

ग़ज़ल

जाँ-बाज़ों के लब पर भी अब ऐश का नाम आया

नुशूर वाहिदी

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जाँ-बाज़ों के लब पर भी अब ऐश का नाम आया
जिस हाथ में तेशा था उस हाथ में जाम आया

इक ताज़ा तग़य्युर है तहज़ीब की दुनिया में
या हुस्न-ए-हक़ीक़ी को अंदाज़-ए-ख़िराम आया

राहत का तसव्वुर ही बाक़ी न रहा शायद
होंटों पे तकल्लुफ़ से आराम का नाम आया

कुछ सोच के इक राह-ए-पुर-ख़ार से गुज़रा था
काँटे भी न रास आए दामन भी न काम आया

साक़ी ये हरीफ़ों को पहचान के देना क्या
जब बज़्म से हम निकले तब दौर में जाम आया

इस तीरा-नसीबी में किरनों का सहारा क्या
सूरज की तरफ़ देखा वो भी लब-ए-बाम आया

ये राज़-ओ-नियाज़-ए-ग़म कुछ वो भी समझते हैं
जब चोट पड़ी दिल पर पलकों को सलाम आया

ग़म और ख़ुशी दोनों हर रोज़ के मेहमाँ हैं
ये सुब्ह-ब-सुब्ह आई वो शाम-ब-शाम आया

फेंके हुए शीशों से दिल कितने बनाए हैं
जब जाम कोई टूटा दीवानों के काम आया

कानों में कुछ आती है आवाज़ फड़कने की
फिर कोई नया ताइर शायद तह-ए-दाम आया

अशआर-ए-'नुशूर' अक्सर उन की भी ज़बाँ पर हैं
चुप रह न सका कोई जब वक़्त-ए-कलाम आया