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जान आँखों में रही जी से गुज़रने न दिया | शाही शायरी
jaan aankhon mein rahi ji se guzarne na diya

ग़ज़ल

जान आँखों में रही जी से गुज़रने न दिया

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

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जान आँखों में रही जी से गुज़रने न दिया
अच्छी दीदार की हसरत थी कि मरने न दिया

क्या क़यामत है सितमगार भरी महफ़िल में
दिल चुरा कर तिरी दुज़्दीदा नज़र ने न दिया

मुद्दतों कश्मकश-ए-यास-ओ-तमन्ना में रहे
ग़म ने जीने न दिया शौक़ ने मरने न दिया

नाख़ुदा ने मुझे दलदल में फँसाए रक्खा
डूब मरने न दिया पार उतरने न दिया

कोई तो बात है जो ग़ैर के आगे उस ने
शिकवा कैसा कि मुझे शुक्र भी करने न दिया

ख़ाक आराम की ख़्वाहिश हो वतन से बाहर
जब हमें चैन 'तपिश' अपने ही घर ने न दिया