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जा चुका तूफ़ान लेकिन कपकपी है | शाही शायरी
ja chuka tufan lekin kapkapi hai

ग़ज़ल

जा चुका तूफ़ान लेकिन कपकपी है

सुल्तान अख़्तर

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जा चुका तूफ़ान लेकिन कपकपी है
वक़्त की दीवार अब तक हिल रही है

हम ने पहचाना बहुत लोगों को लेकिन
एक इक सूरत अभी तक अजनबी है

अब किराए के मकाँ में घुट रहा हूँ
बाप दादा की हवेली बिक चुकी है

रोज़ कहते हो मगर कहते नहीं हो
वो कहानी जो अभी तक अन-कही है

कैसे गुज़रा पढ़ के अंदाज़ा लगा लो
वक़्त की तफ़्सीर चेहरे पर लिखी है

अंदर अंदर मैं बिखरता जा रहा हूँ
कोई शय रह रह के मुझ में टूटती है

घास उग आई दर-ओ-दीवार-ए-दिल पर
ख़ाना-वीरानी का मंज़र दीदनी है