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इसी लिबास इसी पैरहन में रहना है | शाही शायरी
isi libas isi pairahan mein rahna hai

ग़ज़ल

इसी लिबास इसी पैरहन में रहना है

रिज़वानुर्रज़ा रिज़वान

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इसी लिबास इसी पैरहन में रहना है
उसे फ़क़त मिरे शेर-ओ-सुख़न में रहना है

तमाम उम्र तिरा हाथ मेरे हाथ में हो
तमाम उम्र इसी इक जतन में रहना है

वो अहल-ए-हुस्न हैं हम से जुदा है बज़्म उन की
हम अहल-ए-फ़न हैं हमें अहल-ए-फ़न में रहना है

है तेरा और मिरा साथ चंद लम्हों का
फिर इस के बा'द किसे अंजुमन में रहना है

किसे मिली है यहाँ राह-ए-शौक़ में मंज़िल
मुसाफ़िरों को हमेशा थकन में रहना है

हमारा दर्द भी उस के बदन में हो 'रिज़वान'
जब उस का दर्द हमारे बदन में रहना है