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इश्क़ से कुछ काम ने कुछ कू-ए-जानाँ से ग़रज़ | शाही शायरी
ishq se kuchh kaam ne kuchh ku-e-jaanan se gharaz

ग़ज़ल

इश्क़ से कुछ काम ने कुछ कू-ए-जानाँ से ग़रज़

वाजिद अली शाह अख़्तर

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इश्क़ से कुछ काम ने कुछ कू-ए-जानाँ से ग़रज़
गुल से मतलब है न कुछ ख़ार-ए-बयाबाँ से ग़रज़

इश्क़ की सरकार को बेबाक बिल्कुल कर चुके
अब न कुछ ज़ंजीर से मतलब न ज़िंदाँ से ग़रज़

किस से हम झगड़ें नहीं अपना किसी मिल्लत में मेल
इश्क़ के बंदे को क्या गब्र-ओ-मुसलमाँ से ग़रज़

आलम-ए-वहशत में उर्यानी का जामा चाहिए
काम हाथों को गरेबाँ से न दामाँ से ग़रज़

तेरी नज़रों में न ठहरेगा ये रू-ए-आफ़्ताब
तुझ को ऐ 'अख़्तर' न होगी माह-ए-ताबाँ से ग़रज़