इश्क़ में कुछ इस सबब से भी है आसानी मुझे
क़ल्ब सहराई मिला है आँख बारानी मुझे
मेरे और मेरे चचा के दौर में ये फ़र्क़ है
उन को तो बीवी मिली थी और उस्तानी मुझे
एक ही मिसरे में दस दस बार दिल बिरयाँ हुआ
वो ग़ज़ल में बाँध कर देते हैं बिरयानी मुझे
कोका-कोला कर गई मुझ को क़लंदर की ये बात
रेल के डब्बे में क्यूँ मिलता नहीं पानी मुझे
ज़ख़्म वो दिल पर लगाते हैं मिरे और उस पे रोज़
अपने घर से भेज देते हैं नमक-दानी मुझे
सारे शिकवे दूर हो जाएँ जो क़ुदरत सौंप दे
मेरी दानाई तुझे और तेरी नादानी मुझे
फूँक देता हूँ मैं उस पर अपना कोई शेर-ए-ख़ुश
जब डराता है कोई अंदोह-ए-पिन्हानी मुझे
ग़ज़ल
इश्क़ में कुछ इस सबब से भी है आसानी मुझे
सरफ़राज़ शाहिद