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इश्क़ में ग़म के सिवा कोई ख़ुशी देखी नहीं | शाही शायरी
ishq mein gham ke siwa koi KHushi dekhi nahin

ग़ज़ल

इश्क़ में ग़म के सिवा कोई ख़ुशी देखी नहीं

अनवर साबरी

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इश्क़ में ग़म के सिवा कोई ख़ुशी देखी नहीं
ज़िंदगी शायान-ए-लुत्फ़-ए-ज़िंदगी देखी नहीं

उन ख़िज़ाँ-सामाँ बहारों को बहारें क्यूँ कहूँ
क्या कभी मैं ने चमन की दिलकशी देखी नहीं

उफ़ वो आँखें मरते दम तक जो रही हैं अश्क-बार
हाए वो लब उम्र भर जिन पर हँसी देखी नहीं

तक रहा हूँ नज़अ में यूँ उन की सूरत बार बार
ज़िंदगी में जैसे ये सूरत कभी देखी नहीं

वो डरे महशर-ब-दामाँ तल्ख़ी-ए-माहौल से
जिस ने उन नज़रों की शान-ए-बरहमी देखी नहीं

बढ़ गया है किस क़दर तारीकियों का सिलसिला
बा-वुजूद-ए-सुब्ह-ए-रौशन रौशनी देखी नहीं