इश्क़ में ऐसी करामात कहाँ थी पहले
आप के हुस्न में ये बात कहाँ थी पहले
अब ये सूरत है कि इम्काँ ही नहीं फ़ुर्क़त का
उन से दिन-रात मुलाक़ात कहाँ थी पहले
अक्स ने देख लिया हुस्न को आईने में
इश्क़ में ऐसी करामात कहाँ थी पहले
रंग लाया है ये उस गुल का तसव्वुर शायद
वर्ना रंगीनी-ए-जज़्बात कहाँ थी पहले
अक़्ल रास आ न गई हो तिरे दीवाने को
फ़िक्र-ए-ना-साज़ी-ए-हालात कहाँ थी पहले
नग़्मे तेरे हैं मगर हैं मिरे होंटों पे रवाँ
मेरी हर बात तिरी बात कहाँ थी पहले
ढल गया इश्क़ भी अब हुस्न के साँचे में 'सहाब'
बाज़ी-ए-ज़ीस्त में यूँ मात कहाँ थी पहले

ग़ज़ल
इश्क़ में ऐसी करामात कहाँ थी पहले
शिव दयाल सहाब