इश्क़ क्या चीज़ है ये पूछिए परवाने से
ज़िंदगी जिस को मयस्सर हुई जल जाने से
मौत का ख़ौफ़ हो क्या इश्क़ के दीवाने को
मौत ख़ुद काँपती है इश्क़ के दीवाने से
हो गया ढेर वहीं आह भी निकली न कोई
जाने क्या बात कही शम्अ' ने परवाने से
हुस्न बे-इश्क़ कहीं रह नहीं सकता ज़िंदा
बुझ गई शम्अ' भी परवाने के जल जाने से
खाए जाती है नदामत मुझे इस ग़फ़लत की
होश में आ के चला आया हूँ मयख़ाने से
कर दिया गर्दिश-ए-अय्याम ने रुस्वा 'साहिर'
मुझ को शिकवा है यगाने से न बेगाने से
ग़ज़ल
इश्क़ क्या चीज़ है ये पूछिए परवाने से
साहिर होशियारपुरी