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इश्क़ जन्मों का है सफ़र शायद | शाही शायरी
ishq janmon ka hai safar shayad

ग़ज़ल

इश्क़ जन्मों का है सफ़र शायद

अजीत सिंह हसरत

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इश्क़ जन्मों का है सफ़र शायद
ख़त्म होगा न उम्र भर शायद

आज कच्चा घड़ा है नाव मिरी
पार लग जाऊँ डूब कर शायद

हर्फ़-ए-मतलब सुना के रो देना
काम कर जाए चश्म-ए-तर शायद

ख़ुद को हम बारहा पुकार आए
आज हम भी नहीं थे घर शायद

और करनी है जुस्तुजू अपनी
और फिरना है दर-ब-दर शायद

कौन पागल को कू-ब-कू ढूँडे
फिर रहा हो नगर नगर शायद

शब गए उठ के याद कर उस को
यूँ दुआओं में हो असर शायद

आ के मंज़िल पे सो गया राही
ख़त्म है बस यहीं सफ़र शायद

बन सँवर कर रहा करो 'हसरत'
उस की पड़ जाए इक नज़र शायद