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इश्क़ आ हम सूँ किया जब राम राम | शाही शायरी
ishq aa hum sun kiya jab ram ram

ग़ज़ल

इश्क़ आ हम सूँ किया जब राम राम

अलीमुल्लाह

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इश्क़ आ हम सूँ किया जब राम राम
हम किसी हाजी को नहिं करते सलाम

मज्लिस-ए-रिंदाँ में ज़ाहिद नहिं सुना
है सबक़ अव्वल वहाँ का जाम जाम

गर ख़लासी हश्र की मंगता है तू
रिंदगी के पी मय-ए-गुलफ़ाम फ़ाम

पूछता है क्या हमारे रम्ज़ को
बे-समझ बे-इश्क़ ज़ाहिद ख़ाम ख़ाम

गर दिखा दें यार के काकुल का तार
सुब्ह को आलम कहेगा शाम शाम

आशिक़ी के मोहकमे में हैं निकात
जान-आे-तन और अक़्ल-ओ-दिल सब दाम दाम

ऐ 'अलीमुल्लाह' ज़ाहिद को लताड़
फ़ाज़िलाँ में ख़ुश मचाया धूम-धाम