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इसे मैं और ये मेरा असा ही तय करेगा | शाही शायरी
ise main aur ye mera asa hi tai karega

ग़ज़ल

इसे मैं और ये मेरा असा ही तय करेगा

तहसीन फ़िराक़ी

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इसे मैं और ये मेरा असा ही तय करेगा
ये राह-ए-इश्क़ मिरा हौसला ही तय करेगा

शब-ए-सियाह के दामन में हैं गुहर क्या किया
नसीब वाले! तिरा रतजगा ही तय करेगा

समुंदरों से मह-ए-चार-दह का खेल है क्या
कोई खिलाड़ी कोई मह-लक़ा ही तय करेगा

हमारा दिल है किसी काम का कि नाकारा
ये अम्र आज कि कल दिल-रुबा ही तय करेगा

हैं शीशा-कश हमें क्या काम कार-ए-दुनिया से
ये राह-ए-सख़्त कोई दूसरा ही तय करेगा

इलाज उन का, जो हैं इस ज़मीं का बोझ, मियाँ!
कोई ख़रोश कोई ज़लज़ला ही तय करेगा

जो हाल-मस्त हैं गुम-कर्दा-राह भी उन्हें क्या
कि रोड-मैप कोई दूसरा ही तय करेगा

बजाए ख़्वाज-गाँ मसनद-नशीं हों ख़्वाजा-सरा
तो मसअला कोई ख़्वाजा-सरा ही तय करेगा

इलाज क्या हो शगालों का बद-सगालों का
ये शेर-ए-नर का कोई हमहमा ही तय करेगा

तमाम शहर की जब बे-हिसी हो सिक्का-ए-वक़्त
तो मोल-तोल कोई मसख़रा ही तय करेगा

ये तय हुआ है कि शेर ओ अदब के पैमाने
हमारे शहर का इक यक-फ़ना ही तय करेगा

मुझे हलाक किया किस ने और क्यूँ किस वक़्त
ये सब मुआमला रोज़-ए-जज़ा ही तय करेगा