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इस तरीक़े को अदावत में रवा रखता हूँ मैं | शाही शायरी
is tariqe ko adawat mein rawa rakhta hun main

ग़ज़ल

इस तरीक़े को अदावत में रवा रखता हूँ मैं

सहबा अख़्तर

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इस तरीक़े को अदावत में रवा रखता हूँ मैं
अपने दुश्मन के लिए हर्फ़-ए-दुआ रखता हूँ मैं

मैं फ़क़ीरी में भी अहल-ए-ज़र से बेहतर ही रहा
कुछ नहीं रखता मगर नाम-ए-ख़ुदा रखता हूँ मैं

मैं कभी तन्हा नहीं होता सर-ए-कुंज-ए-चमन
वो न हों तो हाथ में दस्त-ए-सबा रखता हूँ मैं

मैं ने कम खोया सिवा पाया है कार-ए-इश्क़ में
दिल जहाँ था अब वहाँ इक दिल-रुबा रखता हूँ मैं

जाने कब आ जाए वो सहबा मिसाल-ए-फ़स्ल-ए-गुल
इस लिए वीराना-ए-दिल को सजा रखता हूँ मैं