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इस शहर-ए-कज-कुलाह के आसार देखना | शाही शायरी
is shahr-e-kaj-kulah ke aasar dekhna

ग़ज़ल

इस शहर-ए-कज-कुलाह के आसार देखना

इशरत आफ़रीं

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इस शहर-ए-कज-कुलाह के आसार देखना
और ख़ुद को बे-रिदा सर-ए-बाज़ार देखना

वो मेरे बादबान का खुलना हवा के साथ
और मुड़ के तेरा जानिब-ए-रहवार देखना

आशोब-ए-ख़िश्त-ओ-ख़ाक से जी को अमाँ कहाँ
फिर उस पे रंग-ए-शीशा-ए-पिंदार देखना

अब के लगान कौन उठाने को आएगा
अब के सरों की फ़स्ल है तय्यार देखना

मसनद-नशीन-ए-शहर-ए-ख़राबात कौन हो
किस से सँभल सकेगी ये दस्तार देखना

गह इस फ़सील-ए-याद की क़िंदील पर निगाह
गह अस्प-ए-हर्फ़-ओ-ख़्वाब की रफ़्तार देखना

जिस में ग़रीब-ए-शहर की बेटी चुनी गई
ऐ मेरे शहर-ए-यार वो दीवार देखना