इस से पहले कि चराग़ों को वो बुझता देखे
उस से कहना कि वो आए मिरा चेहरा देखे
उस से कहना मिरे चेहरे से ये आँखें ले जाए
उस से कहना कि कहाँ तक कोई रस्ता देखे
मैं ने देखा है समुंदर में उतरता सूरज
उस से कहना कि मशिय्यत का इशारा देखे
उस से कहना ये मुनादी भी करा दी जाए
कोई इस अहद में अब ख़्वाब न सच्चा देखे
एक मुद्दत से इन आँखों में कोई ख़्वाब नहीं
उस से कहना वो कोई ख़्वाब न ऐसा देखे
उस से कहना कभी वो भी तो सर-ए-शाम 'रविश'
मेरी पलकों पे सितारों को उतरता देखे
ग़ज़ल
इस से पहले कि चराग़ों को वो बुझता देखे
शमीम रविश