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इस नए ग़म से किनारा भी तो हो सकता है | शाही शायरी
is nae gham se kinara bhi to ho sakta hai

ग़ज़ल

इस नए ग़म से किनारा भी तो हो सकता है

नाज़िर वहीद

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इस नए ग़म से किनारा भी तो हो सकता है
इश्क़ फिर हम को दोबारा भी तो हो सकता है

आप अंदाज़ा लगाते रहें बस जुगनू का
मिरी मुट्ठी में सितारा भी तो हो सकता है

क्या ज़रूरी है कि ये जान लुटा दी जाए
उस की यादों पे गुज़ारा भी तो हो सकता है

दिल की बस्ती से सर-ए-शाम जो उट्ठा है धुआँ
अच्छे मौसम का इशारा भी तो हो सकता है

आप को हम से मोहब्बत भी तो हो सकती है
और मोहब्बत में ख़सारा भी तो सकता है

ये जो फैला है फ़लक तक शब-ए-हिज्राँ का ग़ुबार
मिरी वहशत का नज़ारा भी तो हो सकता है