इस नए ग़म से किनारा भी तो हो सकता है
इश्क़ फिर हम को दोबारा भी तो हो सकता है
आप अंदाज़ा लगाते रहें बस जुगनू का
मिरी मुट्ठी में सितारा भी तो हो सकता है
क्या ज़रूरी है कि ये जान लुटा दी जाए
उस की यादों पे गुज़ारा भी तो हो सकता है
दिल की बस्ती से सर-ए-शाम जो उट्ठा है धुआँ
अच्छे मौसम का इशारा भी तो हो सकता है
आप को हम से मोहब्बत भी तो हो सकती है
और मोहब्बत में ख़सारा भी तो सकता है
ये जो फैला है फ़लक तक शब-ए-हिज्राँ का ग़ुबार
मिरी वहशत का नज़ारा भी तो हो सकता है
ग़ज़ल
इस नए ग़म से किनारा भी तो हो सकता है
नाज़िर वहीद