इस दुनिया में अपना क्या है
कहने को सब कुछ अपना है
यूँ तो शबनम भी है दरिया
यूँ तो दरिया भी प्यासा है
यूँ तो हीरा भी है कंकर
यूँ तो मिट्टी भी सोना है
मुँह देखे की बातें हैं सब
किस ने किस को याद किया है
तेरे साथ गई वो रौनक़
अब इस शहर में क्या रक्खा है
बात न कर सूरत तो दिखा दे
तेरा इस में क्या जाता है
ध्यान के आतिश-दान में 'नासिर'
बुझे दिनों का ढेर पड़ा है
ग़ज़ल
इस दुनिया में अपना क्या है
नासिर काज़मी