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इस बुत से दिल लगा के बहुत सोचते रहे | शाही शायरी
is but se dil laga ke bahut sochte rahe

ग़ज़ल

इस बुत से दिल लगा के बहुत सोचते रहे

ललन चौधरी

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इस बुत से दिल लगा के बहुत सोचते रहे
सब्र-ओ-सुकूँ लुटा के बहुत सोचते रहे

जब सामना हुआ तो ज़बाँ रुक गई मिरी
वो भी नज़र झुका के बहुत सोचते रहे

दीवानगी-ए-शौक़ में अपने ही हाथ से
घर अपना हम जला के बहुत सोचते रहे

उमडा जो अब्र याद ने उन की रुला दिया
ख़ाली सुबू उठा के बहुत सोचते रहे

कहते किसे चमन में लुटे आशियाँ की बात
तिनके उठा उठा के बहुत सोचते रहे

देखा ये जब कि यास-ओ-तबाही है हश्र-ए-इश्क़
आँसू बहा बहा के बहुत सोचते रहे

'आफ़त' बशर ने जब भी बशर पर क्या सितम
हम दुख से तिलमिला के बहुत सोचते रहे