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इस बे तुलूअ' शब में क्या तालेअ'-आज़माई | शाही शायरी
is be tulua shab mein kya talea-azmai

ग़ज़ल

इस बे तुलूअ' शब में क्या तालेअ'-आज़माई

सहबा अख़्तर

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इस बे तुलूअ' शब में क्या तालेअ'-आज़माई
ख़ुर्शीद लाख उभरे लेकिन सहर न आई

कब तक फ़रेब-ए-जादा कब तक गुबार-ए-मंज़िल
ऐ दर्द-ए-ना-तमामी ऐ रंज-ए-नारसाई

हर गुल का चाक सीना गुलज़ार आफ़रीना
अब के अजब ख़ज़ीना तेरी बहार लाई

साहिल पे ख़ेमा-कश हैं आसूदगान-साहिल
तूफ़ान कर रहे हैं कश्ती की ना-ख़ुदाई

हर आह कह रही है इक दर्द का फ़साना
हर अश्क लिख रहा है इक क़िस्सा-ए-जुदाई

सहबा कहाँ है यारो कोई उसे पुकारो
वीरान हो रहा है कुंज-ए-ग़ज़ल-सराई