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इरादों की शिकस्तों पर सना-ख़्वानी से पहचाना | शाही शायरी
iradon ki shikaston par sana-KHwani se pahchana

ग़ज़ल

इरादों की शिकस्तों पर सना-ख़्वानी से पहचाना

कलीम हैदर शरर

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इरादों की शिकस्तों पर सना-ख़्वानी से पहचाना
ख़ुदाया मैं ने तुझ को कितनी आसानी से पहचाना

कई लोगों ने फलते फूलते पेड़ों से जाना है
मगर मैं ने तुझे सब्ज़े की उर्यानी से पहचाना

मिरे सज्दे इसी दुनिया में मेरे काम आए हैं
मिरे क़ातिल ने मुझ को मेरी पेशानी से पहचाना

कभी देखा कि दिल कैसे सिकुड़ता है ज़रूरत पर
कभी दुनिया को पैसों की फ़रावानी से पहचाना

रग-ओ-पै में दर आता है 'शरर' हर शेर का नश्शा
ग़ज़ल को बारहा तरतीब-ए-जिस्मानी से पहचाना