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इरादा हो अटल तो मोजज़ा ऐसा भी होता है | शाही शायरी
irada ho aTal to moajaza aisa bhi hota hai

ग़ज़ल

इरादा हो अटल तो मोजज़ा ऐसा भी होता है

ज़फ़र गोरखपुरी

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इरादा हो अटल तो मोजज़ा ऐसा भी होता है
दिए को ज़िंदा रखती है हवा ऐसा भी होता है

सुनाई दे न ख़ुद अपनी सदा ऐसा भी होता है
मियाँ तंहाई का इक सानेहा ऐसा भी होता है

छिड़े हैं तार दिल के ख़ाना-बर्बादी के नग़्मे हैं
हमारे घर में साहिब रत-जगा ऐसा भी होता है

बहुत हस्सास होने से भी शक को राह मिलती है
कहीं अच्छा तो लगता है बुरा ऐसा भी होता है

किसी मासूम बच्चे के तबस्सुम में उतर जाओ
तो शायद ये समझ पाओ ख़ुदा ऐसा भी होता है

ज़बाँ पर आ गए छाले मगर ये तो खुला हम पर
बहुत मीठे फलों का ज़ाइक़ा ऐसा भी होता है