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इन सभी दरख़्तों को आँधियों ने घेरा है | शाही शायरी
in sabhi daraKHton ko aandhiyon ne ghera hai

ग़ज़ल

इन सभी दरख़्तों को आँधियों ने घेरा है

शाहिद ग़ाज़ी

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इन सभी दरख़्तों को आँधियों ने घेरा है
जिन की सब्ज़ शाख़ों पर पंछियों का डेरा है

आज के ज़माने में किस को रहनुमा समझें
अब तो हर क़बीले का राहबर लुटेरा है

सौ दिए जलाए हैं दोस्तों के आँगन में
फिर भी मेरे आँगन में हर तरफ़ अँधेरा है

तुझ को कुछ ख़बर भी है मेरे दिल की शहज़ादी
मेरे दिल के गोशे में बस ख़याल तेरा है

तेरे हिज्र में मेरी देख बुझ गईं आँखें
कुछ नज़र नहीं आता हर तरफ़ अँधेरा है

ज़ुल्म सह के भी मैं ने होंट सी लिए 'ग़ाज़ी'
एक ज़र्फ़ उन का है एक ज़र्फ़ मेरा है