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इक जगह हूँ फिर वहाँ इक याद रह जाने के बाद | शाही शायरी
ek jagah hun phir wahan ek yaad rah jaane ke baad

ग़ज़ल

इक जगह हूँ फिर वहाँ इक याद रह जाने के बाद

जावेद शाहीन

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इक जगह हूँ फिर वहाँ इक याद रह जाने के बाद
किस क़दर पानी किसी दरिया में बह जाने के बाद

इक जगह ख़ुद मुझ को अपने सच पे शक सा पड़ गया
पुर-यक़ीं कितना था वो इक झूट कह जाने के बाद

शाम है और जाने वाला दिन है मेरे सामने
रंज में हूँ मेरा सारा काम रह जाने के बाद

है यक़ीं मुझ को कि है रहने के क़ाबिल ये जहाँ
हाँ मगर कितना ख़स ओ ख़ाशाक बह जाने के बाद

इक नई तामीर का सोचूँगा फिर पहले मुझे
साफ़ करनी है ज़मीं इक शहर ढह जाने के बाद

यूँ हुआ फिर मैं ने उस से कम तअल्लुक़ कर लिया
उस की कोई बात इक मुश्किल से सह जाने के बाद

ख़ुद से बातें कर के कोई बोझ हल्का हो गया
कुछ सुकूँ आ जाए जैसे ज़ख़्म बह जाने के बाद

सोच ले 'शाहीन' उसे पाना कि खोना है उसे
जा चुका है वो तुझे इक बात कह जाने के बाद