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इक ईमा इक इशारा मर रहा है | शाही शायरी
ek ima ek ishaara mar raha hai

ग़ज़ल

इक ईमा इक इशारा मर रहा है

अब्दुल अहद साज़

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इक ईमा इक इशारा मर रहा है
उफ़ुक़ पर दिल के तारा मर रहा है

जो मेरे ब'अद सब पैदा हुआ था
वो मुझ से पहले सारा मर रहा है

जिसे था फूल कर फटना ही लाज़िम
सिकुड़ कर वो ग़ुबारा मर रहा है

कई मौजों ने दम तोड़ा था जिस पर
सुना है वो किनारा मर रहा है

ख़िरद तहलील सहरा कर रही है
जुनूँ का इस्तिआरा मर रहा है

नज़र की मौत इक ताज़ा अलमिया
और इतने में नज़ारा मर रहा है

ज़माँ-पैमा यही मिक़्यास-ए-दिल था
मगर अब उस का पारा मर रहा है

मुझे ज़िंदा थी जिस की नागवारी
वो अब मुझ को गवारा मर रहा है

कहाँ माँगी हुई साँसें कहाँ दिल
जलाया था, दोबारा मर रहा है