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इक-दूजे में भी तो रहा जा सकता है | शाही शायरी
ik-duje mein bhi to raha ja sakta hai

ग़ज़ल

इक-दूजे में भी तो रहा जा सकता है

विनीत आश्ना

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इक-दूजे में भी तो रहा जा सकता है
हिज्र अभी कुछ दिन टाला जा सकता है

यूँ भी तो कितनी चीज़ें हैं इस घर में
मेरा दिल कुछ रोज़ रखा जा सकता है

ख़ार अगर हैं फूल भी तो है थोड़े से
दामन को तो महकाया जा सकता है

काश मिरा दिल वो बच्चा ही रहता जो
आसानी से बहलाया जा सकता है

पैराहन अल्फ़ाज़ के बूटों वाला इक
ख़ामोशी को पहनाया जा सकता है

टूट के ही एहसास मुझे ये हो पाया
दर्द अभी कुछ और सहा जा सकता है

आप ख़ुदा होने की कोशिश में हैं पर
सिर्फ़ आश्ना भी तो हुआ जा सकता है