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इक बर्फ़ का दरिया अंदर था | शाही शायरी
ek barf ka dariya andar tha

ग़ज़ल

इक बर्फ़ का दरिया अंदर था

साहिबा शहरयार

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इक बर्फ़ का दरिया अंदर था
दहका हुआ सूरज सर पर था

नफ़रत के शो'ले दहकते थे
इक ख़ौफ़ का आलम घर घर था

हर दिल में थे ख़दशात कई
हर लम्हा दहशत-मंज़र था

ज़ाहिर में लगता था मोम का वो
छू कर देखा तो पत्थर था

नग़्मे लिखता था अश्कों से
ऐसा भी एक सुखनवर था

जो हार को जीत बना देता
क्या कोई ऐसा सिकंदर था

हँसता रहता था वो ग़म में
ग़म का वो शायद ख़ूगर था