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इब्तिदा कितनी मोहब्बत की हसीं होती है | शाही शायरी
ibtida kitni mohabbat ki hasin hoti hai

ग़ज़ल

इब्तिदा कितनी मोहब्बत की हसीं होती है

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

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इब्तिदा कितनी मोहब्बत की हसीं होती है
ज़िंदगी ख़्वाब पे माइल-ब-यक़ीं होती है

आतिश-ए-रश्क से जलता है दिल-ए-दर्द-नवाज़
कोई उफ़्ताद अगर और कहीं होती है

अस्ल ईमाँ है मोहब्बत जिसे क़िस्मत से मिले
कौन कहता है कि ये दुश्मन-ए-दीं होती है

करवटें दर्द बदलता है ख़ुदा ख़ैर करे
एक कसक और नई दिल के क़रीं होती है

'अश्क' आँखों में हैं गर अहल-ए-मोहब्बत की तो क्या
चोट लगती है जहाँ टीस वहीं होती है