हुस्न फिर फ़ित्नागर है क्या कहिए 
दिल की जानिब नज़र है क्या कहिए 
फिर वही रहगुज़र है क्या कहिए 
ज़िंदगी राह पर है क्या कहिए 
हुस्न ख़ुद पर्दा-वर है क्या कहिए 
ये हमारी नज़र है क्या कहिए 
आह तो बे-असर थी बरसों से 
नग़्मा भी बे-असर है क्या कहिए 
हुस्न है अब न हुस्न के जल्वे 
अब नज़र ही नज़र है क्या कहिए 
आज भी है 'मजाज़' ख़ाक-नशीं 
और नज़र अर्श पर है क्या कहिए
        ग़ज़ल
हुस्न फिर फ़ित्नागर है क्या कहिए
असरार-उल-हक़ मजाज़

