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हुस्न की जितनी बढ़ीं रानाइयाँ | शाही शायरी
husn ki jitni baDhin ranaiyan

ग़ज़ल

हुस्न की जितनी बढ़ीं रानाइयाँ

मोहम्मद उस्मान आरिफ़

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हुस्न की जितनी बढ़ीं रानाइयाँ
इश्क़ के सर हो गईं रुस्वाइयाँ

उस निगाह-ए-नाज़ का आलम न पूछ
छू गई जो क़ल्ब की गहराइयाँ

वो हरीम-ए-नाज़ में बेचैन हैं
याद आती हैं मिरी तन्हाइयाँ

उन हसीं आँखों में आँसू आ गए
आह मेरे इश्क़ की रुस्वाइयाँ

महफ़िल-ए-दुनिया को ठुकरा दूँ मगर
जल्वा-फ़रमा हैं तिरी रानाइयाँ

हुस्न के दामन पे धब्बा आ गया
दूर जा पहुँचें मिरी रुस्वाइयाँ

मेरे क़दमों में है ऐश-ए-जावेदाँ
तेरे ग़म की हैं करम-फ़रमाइयाँ

इश्क़ की फ़ितरत है 'आरिफ़' बेबसी
चल नहीं सकतीं तिरी ख़ुद-आराइयाँ