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हुस्न हर नौनिहाल रखता है | शाही शायरी
husn har naunihaal rakhta hai

ग़ज़ल

हुस्न हर नौनिहाल रखता है

मीर मोहम्मदी बेदार

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हुस्न हर नौनिहाल रखता है
कोई तुझ सा जमाल रखता है

मुझ से हो तेरे जौर का शिकवा
ये भला एहतिमाल रखता है

तुझ से कुछ अपना अर्ज़-ए-हाल करे
दिल कब इतनी मजाल रखता है

माह क्या है कि जिस से दूँ तश्बीह
हुस्न तू बे-ज़वाल रखता है

जीते-जी उस से आशिक़-ए-महजूर
कब उमीद-ए-विसाल रखता है

तू कहाँ और उस का वस्ल कहाँ
ये ख़याल-ए-मुहाल रखता है

जी में 'बेदार' तेरे मिलने का
आह क्या क्या ख़याल रखता है