EN اردو
हुस्न-ए-ज़न काम लीजे बद-गुमानी फिर सही | शाही शायरी
husn-e-zan kaam lije bad-gumani phir sahi

ग़ज़ल

हुस्न-ए-ज़न काम लीजे बद-गुमानी फिर सही

मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी

;

हुस्न-ए-ज़न काम लीजे बद-गुमानी फिर सही
बे-तकल्लुफ़ और कीजे मेहरबानी फिर सही

आज जो बीती है दिल पर माजरा उस का सुनो
दास्तान-ए-इशरत-ए-अहद-ए-जवानी फिर सही

ज़र्फ़ से कम वक़्त से पहले नहीं मिलती यहाँ
आज ज़हर-ए-ग़म ही पी लो अर्ग़वानी फिर सही

तेग़ किस के हाथ में थी कौन था सीना-सिपर
ये कहानी आज सुन लो वो कहानी फिर सही

शम्-ए-फ़ानूस-ए-तलब हर रंग में रौशन रहे
ख़ूँ-फ़िशानी के मज़े लो गुल-फ़िशानी फिर सही

ज़ेहन को मानूस कर देता है लफ़्ज़ों का तिलिस्म
मुद्दआ कह दीजिए जादू-बयानी फिर सही

किस में हिम्मत है 'फ़रीदी' कौन ये उन से कहे
मुस्कुरा कर हाल सुन लो लन-तरानी फिर सही