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हुस्न-ए-काफ़िर-शबाब का आलम | शाही शायरी
husn-e-kafir-shabab ka aalam

ग़ज़ल

हुस्न-ए-काफ़िर-शबाब का आलम

जिगर मुरादाबादी

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हुस्न-ए-काफ़िर-शबाब का आलम
सर से पा तक शराब का आलम

अरक़-आलूद चेहरा-ए-ताबाँ
शबनम-ओ-आफ़्ताब का आलम

वो मिरी अर्ज़-ए-शौक़-ए-बेहद पर
कुछ हया कुछ इ'ताब का आलम

अल्लाह अल्लाह वो इम्तिज़ाज-ए-लतीफ़
शोख़ियों में हिजाब का आलम

हमा नूर-ओ-सुरूर की दुनिया
हमा हुस्न-ओ-शबाब का आलम

वो लब-ए-जूएबार ओ मौसम-ए-गुल
वो शब-ए-माहताब का आलम

ज़ानू-ए-शौक़ पर वो पिछले पहर
नर्गिस-ए-नीम-ख़्वाब का आलम

देर तक इख़्तिलात-ए-राज़-ओ-नियाज़
यक-ब-यक इज्तिनाब का आलम

लाख रंगीं-बयानियों पे मिरी
एक सादा जवाब का आलम

ग़म की हर मौज मौज-ए-तूफ़ाँ-ख़ेज़
दिल का आलम हुबाब का आलम

दिल-ए-मुतरिब समझ सके शायद
इक शिकस्ता रुबाब का आलम

वो समाँ आज भी है याद 'जिगर'
हाँ मगर जैसे ख़्वाब का आलम