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हुस्न-ए-जानाँ नज़र नहीं आता | शाही शायरी
husn-e-jaanan nazar nahin aata

ग़ज़ल

हुस्न-ए-जानाँ नज़र नहीं आता

मसूद मैकश मुरादाबादी

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हुस्न-ए-जानाँ नज़र नहीं आता
आह में कुछ असर नहीं आता

शो'ला-ए-ग़म नज़र नहीं आता
अब कोई भी इधर नहीं आता

दिल शब-ए-ग़म से हो गया मानूस
अब ख़याल-ए-सहर नहीं आता

इश्क़ एहसान से इबारत है
इश्क़-ए-नादाँ नज़र नहीं आता

होश-मंदों की इस ख़ुदाई में
कोई दीवाना-गर नहीं आता

कब से हैं फ़र्श-ए-राह दीदा-ओ-दिल
आने वाला मगर नहीं आता

जब से तुम ने निगाह फेरी है
कोई अपना नज़र नहीं आता

जब से 'मैकश' बहार आई है
दामन-ए-दिल नज़र नहीं आता