हुस्न-ए-जानाँ नज़र नहीं आता
आह में कुछ असर नहीं आता
शो'ला-ए-ग़म नज़र नहीं आता
अब कोई भी इधर नहीं आता
दिल शब-ए-ग़म से हो गया मानूस
अब ख़याल-ए-सहर नहीं आता
इश्क़ एहसान से इबारत है
इश्क़-ए-नादाँ नज़र नहीं आता
होश-मंदों की इस ख़ुदाई में
कोई दीवाना-गर नहीं आता
कब से हैं फ़र्श-ए-राह दीदा-ओ-दिल
आने वाला मगर नहीं आता
जब से तुम ने निगाह फेरी है
कोई अपना नज़र नहीं आता
जब से 'मैकश' बहार आई है
दामन-ए-दिल नज़र नहीं आता

ग़ज़ल
हुस्न-ए-जानाँ नज़र नहीं आता
मसूद मैकश मुरादाबादी