हुस्न-ए-बे-मेहर को परवा-ए-तमन्ना क्या हो
जब हो ऐसा तो इलाज-ए-दिल-ए-शैदा क्या हो
कसरत-ए-हुस्न की ये शान न देखी न सुनी
बर्क़ लर्ज़ां है कोई गर्म-ए-तमाशा क्या हो
बे-मिसाली के हैं ये रंग जो बा-वस्फ़-ए-हिजाब
बे-नक़ाबी पर तिरा जल्वा-ए-यकता क्या हो
देखें हम भी जो तिरे हुस्न-ए-दिल-आरा की बहार
इस में नुक़सान तिरा ऐ गुल-ए-राना क्या हो
हम ग़रज़-मंद कहाँ मर्तबा-ए-इश्क़ कहाँ
हम को समझें वो हवस-कार तो बेजा क्या हो
दिल-फ़रेबी है तिरी बाइस-ए-सद जोश ओ ख़रोश
हाल ये हो तो दिल-ए-ज़ार शकेबा क्या हो
रात दिन रहने लगी उस सितम-ईजाद की याद
'हसरत' अब देखिए अंजाम हमारा क्या हो
ग़ज़ल
हुस्न-ए-बे-मेहर को परवा-ए-तमन्ना क्या हो
हसरत मोहानी